संविधान के 75 साल,,
दुनिया के सबसे बड़े लिखित संविधान का दर्जा भारत देश के पास है.
संविधान के 75 साल,,
एंकर- दुनिया के सबसे बड़े लिखित संविधान का दर्जा भारत देश के पास है……इस लिखित संविधान की विविधता दुनिया के किसी भी देश से सबसे अलग है। बेशक जिस संविधान की चर्चा पूरी दुनिया मे होती है उसे अलंकृत करने मे संस्कारधानी जबलपुर का प्रमुख योगदान है। संविधान के जिस मुख्य पृष्ठ को दुनिया देखती है उसे अलंकृत किया है जबलपुर के रहने वाले स्व. ब्यौहार राममनोहर सिन्हा ने। आज भले ही वो इस दुनिया मे न हो लेकिन उनका काम कभी भी भुलाया नही जा सकेगा।
वीओ- हमारे देश के संविधान का मुख्य पृष्ठ अपने आप में बेहद अनोखा है संविधान के मुख्य पृष्ठ को जिस ढ़ंग से अलंकृत किया गया है उसमे भारत की एकता,,,, संप्रभुता को दर्शाया गया है। संविधान की मुख्य पृष्ठ का संबंध संस्कारधानी जबलपुर से भी है। जब-जब देश के संविधान की चर्चा होगी, तो जबलपुर का नाम भी जरूर आएगा क्योंकि संविधान के मुख्य पृष्ठ मे पिरोइ गई कलाकृति जबलपुर में जन्मे कलाकार ब्यौहार राम मनोहर सिन्हा ने की थी। संविधान के मुख्य पृष्ठ को सिन्हा ने ही अपने हॉथो से सजाया और संवारा था।
एम्वीयेन्स…
वीओ- संविधान को केवल शब्दों से नहीं बल्कि अलंकरण से भी सजाया गया है। संविधान को अलंकृत करने की सोच सन् 1935 में हुई जब डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद और काका कालेकर जबलपुर आए। दरअसल जब भारत अंग्रेजों की हुकूमत के शिकंजे में कसा हुआ था तब 1925 में स्वराज संविधान का विचार आया और इस विचार को जन्म दिया नेताजी सुभाष चंद्र बोस ने ,,,,,जिन्होंने पंडित जवाहरलाल नेहरू के साथ मिलकर स्वराज संविधान पर एक साथ काम किया। 1935 में जब डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद जबलपुर आए तो व्यवहार राजेंद्र प्रसाद के घर ठहरे और स्वराज संविधान पर आगे काम करने का विचार बनाया। जबलपुर में ही यह बात तय की गई कि जब भारत आजाद होगा और उसका खुद का संविधान होगा तो उसमें चित्रों के माध्यम से भी संविधान को रूप दिया जाएगा।
बाइट- ब्यौहार डॉ अनुपम सिन्हा,ब्यौहार राम मनोहर सिन्हा के बेटे
वीओ- संविधान में कला को समाहित करना है इस विचारधारा का जन्म 1935 में जबलपुर में ही हुआ था लेकिन यह बात डॉ राजेंद्र प्रसाद के दिमाग में बैठ गई थी ,,,,,यही वजह थी कि जब भारत आजाद हुआ और भारत के संविधान के निर्माण की बात शुरू हुई तो डॉ राजेंद्र प्रसाद ने यह बात संविधान समिति के सामने रखी। जब भारत के संविधान का निर्माण होगा तो उसमें हम कला के जरिए भी संविधान की प्रमुखता को दिखाएंगे और यही वजह थी कि डॉ राजेंद्र प्रसाद ने तत्काल देश के सबसे बड़े कला केंद्र शांतिनिकेतन के प्रमुख नंदलाल बोस से संपर्क किया और उनसे कहा कि उस संविधान को अलंकृत करने के लिए चित्रकारी बनाएं।
बाइट- ब्यौहार डॉ अनुपम सिन्हा,ब्यौहार राम मनोहर सिन्हा के बेटे
वीओ- नंदलाल बोस उस समय काफी बुजुर्ग हो गए थे इसीलिए उन्होंने यह महत्वपूर्ण जिम्मेदारी अपने प्रिय शिष्य ब्यौहार राम मनोहर सिन्हा के कंधों पर डाली और कहा कि वह संविधान के मुख्य पृष्ठ से लेकर उसमें समाहित होने वाले तमाम चित्रों को बनाएं। काम बहुत ज्यादा था और समय बहुत कम इसलिए राम मनोहर सिन्हा ने अपने साथियों के साथ मिलकर संविधान पर काम करना शुरू कर दिया। इस बीच वह तारीख आ गई जब भारत के संविधान को लागू करना था तो 26 जनवरी 1950 को संविधान लागू कर दिया गया ,,,लेकिन उसके अलंकरण का काम इसके बाद भी जारी रहा और मई 1950 को भारत के संविधान को अलंकृत किया गया।
बाइट- ब्यौहार डॉ अनुपम सिन्हा,ब्यौहार राम मनोहर सिन्हा के बेटे
वीओ- सिन्हा ने जब बना हुआ पृष्ठ अपने गुरु को दिखाया तो बोस बहुत खुश हुए। उन्होंने कहा कि ये बना तो बेहतरीन है। लेकिन इस बेजोड़ नमूने को मैं स्वीकार नहीं कर सकता। इसमें कला तो है, लेकिन कलाकार नदारद है। हर कला को जीवंत उसे बनाने वाले कलाकार के हस्ताक्षर करते हैं, जो इसमें नहीं है। यह मुझे मंजूर नहीं है। तब उस युवा चित्रकार ने जो जवाब दिया, वो लाजवाब था। उन्होंने कहा कि यह मात्र कला नही बल्कि देश के लिए मेरा योगदान है । उसमे मेरा नाम आए, मैं यह जरूरी नहीं मानता। लेकिन उनके गुरु नहीं माने तो उन्होंने अपना नाम भी पृष्ठ के दायें निचले कोने में कुछ इस तरह चित्रित कर दिया कि डिजाईन में राम आ गया ।
बाइट- ब्यौहार डॉ अनुपम सिन्हा,ब्यौहार राम मनोहर सिन्हा के बेटे
वीओ – देश दुनिया के कम लोग इस इतिहास को जानते है कि संविधान के मुख्य पृष्ठ का अलंकरण जबलपुर के ब्यौहार राम मनोहर सिन्हा ने किया था। खास बात ये है कि जब तक ब्यौहार राम मनोहर जिंदा रहे तब तक उन्होने इस राज को राज ही रहने दिया। अब उनके बेटे डॉ अनूपम अपने पिता की इस विरासत और अकल्पनीय प्रतिभा को देश दुनिया के सामने लेकर आ रहे है।