कबीर जी की वाणी में समरसता के भाव निहित है
समरसता सेवा संगठन ने संत कबीर जयंती पर किया विचार गोष्ठी एवं सम्मान समारोह का आयोजन
जबलपुर। समरस भारत – समर्थ भारत के लिये सब सबको जाने – सब सबको माने, एक अभियान के अंतर्गत समरसता सेवा संगठन द्वारा संत कबीर जी की जयंती पर एक विचार गोष्ठी एवं सम्मान समारोह का आयोजन मुख्य अतिथि डॉ वाणी अहलूवालिया, मुख्य वक्ता श्री राजकुमार ठाकुर संयुक्त आयुक्त जीएसटी, विशिष्ट अतिथि श्री राजेश पाठक प्रवीण, समरसता सेवा संगठन के अध्यक्ष श्री संदीप जैन की उपस्थिति में जेके सेलिब्रेशन सभागार सदर में आयोजित किया गया।
कार्यक्रम की प्रस्तावना संगठन के सचिव उज्ज्वल पचौरी ने रखते हुए स्वागत उद्बोधन दिया। संगठन वक्ता के रूप में आलोक पाठक ने कबीर दास जी के व्यक्तित्व पर प्रकाश डाला। समाजसेवी श्रीमती आभा साहू ने कबीर दास जी के दोहों का वाचन किया। संगीतकार एवं गायक अनवर हुसैन ने सुंदर भजन की प्रस्तुति देते हुए श्रोताओं को मंत्रमुग्ध कर दिया। कवि गणेश श्रीवास्तव प्यासा ने अपनी कविता के माध्यम से कबीर दास जी पर कविता सुनाई।
कार्यक्रम की मुख्य अतिथि डॉ वाणी अहलूवालिया ने अपने संबोधन में कहा समरसता सेवा संगठन के अध्यक्ष संदीप जी द्वारा शहर में आयोजित होने वाले ऐसे छोटे छोटे कार्यक्रम की गूंज चारो ओर सुनाई दे रही है, और जब ऐसी विचार गोष्ठियों को सुनने बाद हम सभागार से बाहर निकलते है तो हमारे मन में समाज और समरसता के प्रति एक नवीन भाव प्रकट होता है।
उन्होंने कहा कबीर दास जी के जो विचार थे और उनके दोहों का जो प्रयास था उन्हे यदि हम अपने जीवन में और परिवार में उतारे तो हम निश्चित रूप से अपने जीवन में आगे बड़कर देश और समाज के लिए कुछ योगदान अवश्य दे सकेंगे।
मुख्य वक्ता श्री राजकुमार ठाकुर ने विचार गोष्ठी को संबोधित करते हुए कहा कबीर दास जी का जन्म 14 सौ ईसवी में माना जाता है और उनका देहावसान 15 सौ ईसवी में हुआ था उन्होंने अपने कविताओं और दोहों के माध्यम ने समाज में ईश्वर और समाजिक समरसता के प्रति जन चेतना लाने का प्रयास किया था
कबीर सामाजिक समसरता के वाहक थे। उन्होंने अपने दोहों के माध्यम विभिन्न धर्मों और सामाजिक कुरूतियो पर चोट भी की साथ ही अलग अलग धर्मो को अपनाते हुए उनके विचारो को आत्मसात किया।
उन्होंने बताया कबीर दास जी 15वीं सदी के भारतीय रहस्यवादी कवि और संत थे। वे हिंदी साहित्य के भक्तिकाल के निर्गुण शाखा के ज्ञानमार्गी उपशाखा के महानतम कवि थे। इनकी रचनाओं ने हिन्दी प्रदेश के भक्ति आंदोलन को गहरे स्तर तक प्रभावित किया। उनकी रचनाएँ सिक्खों के आदि ग्रंथ में सम्मिलित की गयी हैं। वे एक सर्वोच्च ईश्वर में विश्वास रखते थे। उन्होंने सामाज में फैली कुरीतियों, कर्मकांड, अंधविश्वास की निंदा की और सामाजिक बुराइयों की कड़ी आलोचना की। उनके जीवनकाल के दौरान हिन्दू और मुसलमान दोनों ने उनका अनुसरण किया। कबीर पंथ नामक सम्प्रदाय इनकी शिक्षाओं के अनुयायी हैं।
उन्होंने कहा कबीर पढ़े लिखे नहीं थे, इसलिए उनके दोहों को उनके शिष्यों द्वारा ही लिखा या संग्रीहित किया गया था। उनके दो शिष्यों, भागोदास और धर्मदास ने उनकी साहित्यिक विरासत को संजोया। कबीर के छंदों को सिख धर्म के ग्रंथ “श्री गुरुग्रन्थ साहिब” में भी शामिल किया गया है। श्री गुरु ग्रंथ साहिब में संत कबीर के 226 दोहे शामिल हैं और श्री गुरु ग्रंथ साहिब में शामिल सभी भक्तों और संतों में संत कबीर के ही सबसे अधिक दोहे दर्ज किए गए हैं। क्षतिमोहन सेन ने कबीर के दोहों को काशी सहित देश के अन्य भागों के सन्तों से एकत्र किया था। रविंद्र नाथ ठाकुर ने इनका अंग्रेजी अनुवाद करके कबीर की वाणी को विश्वपटल पर लाया। हिन्दी में बाबू श्यामसुन्दर दास, आचार्य रामचन्द्र शुक्ल, हजारीप्रसाद द्विवेदी सहित अनेक विद्वानों ने कबीर और उनकी साहित्यिक साधना पर ग्रन्थ लिखे हैं।
विशिष्ट अतिथि राजेश पाठक प्रवीण ने भी विचार गोष्ठी को संबोधित करते हुए कहा कबीर व्यक्ति नही शक्ति है और कबीर ने अपने दोहों के माध्यम से समरसता के भाव को जागृत किया और समाज को एक नई चेतना दी।
सम्मान – कार्यक्रम के दूसरे चरण में एनपी झरिया, पूर्व एसपी गोपाल प्रसाद खांडेल, जेपी मेहरा, देवेंद्र झारिया, भगवत प्रसाद झारिया, चंद्रप्रकाश झारिया, दीपचंद्र विनोदिया, अजय झरिया, विनीता पैगवार, अनुराग कोरी साई, बीएल कोरी, राकेश पैगवार, मथुराप्रसाद कोरी, मीना झारिया, राधा झारिया, प्रेस छायाकार हरि मेहरा, जागेश्वर रैदास, हेमराज चढ़ार का सम्मान किया गया।