संस्कृति की रक्षा और देश की उन्नति हमारी सुमति पर ही आधारित है।

जन जन के हृदय सम्राट संस्कृति संरक्षक निर्यापक मुनि श्री १०८ प्रसाद सागर जी महाराज संसंघ संगम कॉलोनी जबलपुर में विराजमान है

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संस्कृति की रक्षा और देश की उन्नति हमारी सुमति पर ही आधारित है।
जन जन के हृदय सम्राट संस्कृति संरक्षक निर्यापक मुनि श्री १०८ प्रसाद सागर जी महाराज संसंघ संगम कॉलोनी जबलपुर में विराजमान है जहां प्रतिदिन ज्ञान गंगा का प्रवाह सतत चल रहा है जिसमें निर्यापक श्री ने बताया कृति और कर्म की उतनी कीमत नहीं जितनी की संस्कृति की और प्रकृति की रक्षा करने पर ही संस्कृति की रक्षा संभव है।अग्नि की पिटाई तभी तक होती है जब तक वह लोहे की संगति करती है ठीक इसी प्रकार देह की संगति करने से आत्मा की पिटाई हो रही है और जब तक आत्मा देह की संगति करेगी तब तक उसकी पिटाई होती रहेगी।
भारतीय संस्कृति को विकास शील बनने की आवश्यकता है यह समझते हुए मुनि श्री शीतल सागर जी ने कहा दया प्रधान कृषि कर्म का रूप विकृत होता जा रहा है। आज अण्डों की खेती, मछलियों की खेती (फार्मिग) आरंभ हो रही है इसे भी कृषि का दर्जा दिया जा रहा है। कहाँ गई वह आदिनाथ, महावीर और राम की संस्कृति। यह सब आधुनिकता का प्रभाव है।वैसे तो धार्मिक संस्कृति अभी वर्षों तक टिकेगी लेकिन वह अपने आप नहीं। उसे टिकने के लिये, स्थायी रूप प्रदान करने के लिये चारित्रनिष्ठ, न्याय का पक्ष लेने वाले विभीषण, हनुमान जैसे महान् पुरुषों की जरूरत है।

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