प्रथम सूचना रिपोर्ट से संबंधित

संज्ञेय अपराध से तात्पर्य ऐसे अपराध से है जिसमें पुलिस अधिकारी अभियुक्त को बिना वारंट के गिरफ्तार कर सकता है

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संज्ञेय अपराध से तात्पर्य ऐसे अपराध से है जिसमें पुलिस अधिकारी अभियुक्त को बिना वारंट के गिरफ्तार कर सकता है जबकि असंज्ञेय अपराध में पुलिस अधिकारी को बिना वारंट के गिरफ्तार करने की अधिकारिता नहीं होती है ।कौन से मामले संज्ञेय होंगे कौन से असंज्ञेय होंगे इस संबंध में भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता 2023 की प्रथम अनुसूची में विस्तृत विवेचना की गई है
प्रथम सूचना रिपोर्ट से संबंधित उपबंध धारा 173 में दिए गए हैं
“जब किसी व्यक्ति को यह जानकारी प्राप्त होती है कि अपराध किया गया है तो वह यह विचार किए बिना कि वह अपराध किस थाने की सीमाओं के भीतर किया गया है पुलिस थाने के भारसाधक अधिकारी को अपराध किए जाने की सूचना देगा अपराध किए जाने की सूचना लिखित या मौखिक या इलेक्ट्रॉनिक माध्यम से की जा सकती है यदि सूचना मौखिक रूप से की जाती है तो पुलिस अधिकारी के निर्देशन पर उसे लिखा जाएगा, सूचना देने वाले व्यक्ति को पढ़कर सुनाया जाएगा यदि वह व्यक्ति संतुष्ट हो जाता है तो उसके हस्ताक्षर किए जाएंगे यदि सूचना इलेक्ट्रॉनिक माध्यम से की जाती है तो उसे देने वाले व्यक्ति द्वारा तीन दिन के भीतर हस्ताक्षर किए जाने पर उसके द्वारा अभिलेख पर ली जाएगी सूचना का सार को ऐसी पुस्तक मे जो राज्य सरकार के द्वारा इस उद्देश्य के लिए रखी गई है उसमें प्रविष्ट किया जाएगा जिसे FIR कहते है

यदि अपराध भारतीय न्याय संहिता की धारा 64,65, 66 ,67 68 69 70,71, 74,75 ,76, 77, 78,79 80 या 124 से संबंधित अपराध की सूचना पुलिस थाने के भार साधक अधिकारी को की जाती है तो ऐसी सूचना को महिला पुलिस अधिकारी के द्वारा लिखा जाएगा । जिस महिला के संबंध में उपरोक्त धाराओं का अपराध किया गया है अगर वह स्थाई या अस्थाई रूप से शारीरिक या मानसिक रूप से दिव्यांग है तो अपराध की रिपोर्ट उसके निवास स्थान पर उसके मनपसंद किसी स्थान पर द्विभाषिए या किसी विशेष शिक्षक की उपस्थिति में लिखी जाएगी तथा उसकी एक वीडियो फिल्म तैयार की जाएगी
FIR की एक प्रति सूचना देने वाले व्यक्ति को निशुल्क उपलब्ध कराई जाएगी
यदि अपराध जिसकी सूचना दी गई है 3 वर्ष से अधिक किंतु 7 वर्ष से कम अवधि से दंडनीय संज्ञेय अपराध है तब पुलिस थाने का भारसाधक अधिकारी मामले की गंभीरता पर विचार करते हुए उप पुलिस अधीक्षक की पंक्ति के पुलिस अधिकारी की अनुमति से
(1) यह निश्चित करने के लिए की क्या 14 दिन की अवधि के भीतर कार्यवाही करने के लिए मामला विद्यमान है आरंभिक जांच करने के लिए कार्यवाही कर सकेगा या
(2) जब कोई मामला प्रथम दृष्टया विद्यमान है तब अन्वेषण के लिए कार्यवाही करेगा
:● यदि पुलिस थाने का भारसाधक अधिकारी FIR लिखने से इंकार करता है तब प्रकिया:
यदि कोई पुलिस अधिकारी अपराध किए जाने की सूचना को अभिलिखित करने से इनकार करता है तब ऐसी दशा में संबंधित व्यक्ति के पास है अधिकार है कि वह सूचना का सार लिखकर पुलिस अधीक्षक को डाक के माध्यम से भेज सकता है यदि पुलिस अधीक्षक को यह लगता है कि ऐसी सूचना में संज्ञेय अपराध किया जाना प्रकट होता है तो या तो वह मामले की जांच स्वयं करेगा या अपने अधीनस्थ पुलिस अधिकारी को जांच करने के लिए निर्देश देगा। जब पुलिस अधीक्षक किसी मामले की जांच करता है तब उसे पुलिस थाने के भारसाधक अधिकारी की समस्त शक्तियां प्राप्त होगी

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