संत रामपाल जी के शिष्यों ने दहेज रहित विवाह कर पेश की जागरूकता की मिसाल

सरकार ने सन् 1961 में दहेज निषेध अधिनियम लागू किया है

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जबलपुर: दहेज रूपी दानव आज सर्व समाज में व्याप्त है। दहेज के कारण तो सभी जानते ही हैं, इसका असर भी किसी से छिपा नहीं है। दहेज की व्यवस्था करने में एक पिता को किन किन कष्टों का सामना करना पड़ता है, यह भी सभी जानते है। एक पिता अपने जीवन भर की मेहनत से कमाई गई पूंजी, जमीन, घर सब बेचकर और कर्ज लेकर दहेज की मांग को पूरा करता है। सिर्फ पिता ही नहीं, दहेज़ के कारण लड़की को भी कष्ट उठाना पड़ता है। दहेज के लिए शादी के पहले और बाद भी लड़की को प्रताड़ित किया जाता है।

सरकार ने सन् 1961 में दहेज निषेध अधिनियम लागू किया है, परंतु समाज पर इसका कोई प्रभाव नहीं पड़ा है। परंतु वर्तमान में एक ऐसे संत है जिनकी शिक्षाओं पर चलकर उनके अनेक अनुयाई बगैर दहेज के विवाह संपन्न कर रहे है। ऐसा ही एक अनोखा विवाह
जबलपुर तहसील के सिहोरा और मझौली निवासी काया और प्रिंस दास जी ने किया है। संत रामपाल जी से दीक्षित दोनों के परिवार जनों ने बताया हमने संत रामपाल महाराज जी से नाम उपदेश ले रखा है। उन्हे स्पाथ किया कि अपने गुरु के आदेशानुसार हमने अपने बच्चों की रमैनी (दहेज मुक्त विवाह) की है। दोनों पक्षों ने बताया कि संत रामपाल महाराज जी के अध्यात्मिक ज्ञान से परिचित होकर विवाह में फैली इन सामाजिक बुराइयों से मुक्ति मिली है। संत रामपाल महाराज जी के अनुयाई ने दहेज रहित विवाह कर समाज में जागरूकता की मिसाल पेश की है।

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