गोपाष्टमी आज
कार्तिक मास के प्रमुख त्योहारों में से एक, गोपाष्टमी का पर्व बृजमंडल में विशेष श्रद्धा और उत्साह के साथ मनाया जाता है। इस वर्ष गोपाष्टमी का पर्व 9 नवंबर, रविवार को मनाया जाएगा। इस दिन बृजमंडल में देशी-विदेशी भक्त भगवान श्रीकृष्ण के गौ प्रेम को याद करते हुए गायों का पूजन करेंगे और द्वापर युग में भगवान कृष्ण द्वारा की गई गौचारण लीला का आयोजन करेंगे। इस अवसर पर गोशालाओं में गौसंवर्धन और संरक्षण से जुड़ी गोष्ठियाँ भी आयोजित की जाती हैं।
गोपाष्टमी का महत्व
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हिन्दू धर्म में गोपाष्टमी व्रत का विशेष महत्व है। इस दिन गौ माता और उनके बछड़ों को सजाया जाता है और उनकी पूजा की जाती है। गोपा अष्टमी हर वर्ष कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि को मनाया जाता है। यह पर्व मुख्य रूप से मथुरा, वृंदावन, समेत ब्रज क्षेत्रों का प्रसिद्ध त्योहार है. ऐसी मान्यता है कि गौ माता का पूजन करने से सभी देवी-देवताओं का आशीर्वाद प्राप्त होता है। इसलिए इस दिन गायों की पूजा करना बहुत शुभ और फलदायी होता है और सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं।
पैराणिक कथा के अनुसार भगवान श्री कृष्ण ने सभी ब्रजवासियों को इंद्र के क्रोध से बचाने के लिए गोवर्धन पूजा के दिन अपनी छोटी उंगली पर गोवर्धन पर्वत को उठा लिया था जिसके नीचे सभी ब्रजवासियों ने बाढ़ से बचने के लिए शरण ली थी, ब्रज क्षेत्र में सात दिनों की निरंतर बाढ़ के बाद भगवान इंद्र का क्रोध शांत हुआ और उन्होंने गोपाष्टमी के दिन ही अपनी हार स्वीकार की थी।इसलिए गोपाष्टमी का त्योहार पूरे ब्रज क्षेत्र में बड़ी ही धूमधाम के साथ मनाया जाता है।
गोपाष्टमी का शुभ मुहूर्त
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गोपाष्टमी हर साल कार्तिक मास की शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि को मनाया जाता है। इस वर्ष 2024 में गोपाष्टमी का पर्व 9 नवंबर, को पड़ रहा है।
तिथि प्रारंभ : 8 नवंबर रात 11:56
तिथि समापत : 9 नवंबर रात 10:45
गोपाष्टमी पर पूजन सामग्री और विधि
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गोपाष्टमी के दिन बछड़ों सहित गाय का पूजन किया जाता है। इस दिन गोपालक सुबह-सवेरे उठकर गायों और बछड़ों को स्नान कराते हैं और उनके अंगों पर मेहंदी, रोली, और हल्दी के छापे लगाते हैं। इसके बाद गायों को विशेष रूप से सजाया जाता है और उनकी पूजा की जाती है। पूजा में धूप, दीप, पुष्प, अक्षत (चावल), रोली, गुड़ या जलेबी जैसी वस्तुओं का प्रयोग होता है। गाय माता की आरती भी की जाती है, ताकि उनकी कृपा से परिवार और समाज में सुख-समृद्धि बनी रहे।
क्यों मनाया जाता है गोपाष्टमी का पर्व?
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गोपाष्टमी के पीछे भगवान श्रीकृष्ण के जीवन की एक महत्वपूर्ण घटना छिपी है। द्वापर युग में भगवान श्रीकृष्ण का गौ प्रेम प्रसिद्ध था। उनके माता-पिता, नंद बाबा और यशोदा माता, उन्हें छोटे होने के कारण गाय चराने से रोकते थे। लेकिन भगवान कृष्ण की इच्छा थी कि वे भी अपने मित्रों के साथ जंगल में जाकर गायों को चराएं और उनके साथ खेलें।
कहा जाता है कि श्रीकृष्ण ने कई बार नंद बाबा से पूछा कि वे गाय चराने कब जा सकते हैं। नंद बाबा ने उन्हें आश्वासन दिया कि वे शीघ्र ही एक उपयुक्त मुहूर्त निकालेंगे। लेकिन जब एक दिन भगवान श्रीकृष्ण ने जिद्द पकड़ी और नंद बाबा के साथ ब्राह्मण के पास मुहूर्त निकलवाने पहुंचे, तो वहां खड़े कृष्ण को देखकर ब्राह्मण ने कहा कि उनके सामने मुहूर्त की आवश्यकता नहीं है।
कैसे शुरू हुआ गोपाष्टमी पर्व मनाना?
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ब्राह्मण ने नंद बाबा को बताया कि उस दिन का मुहूर्त शुभ है और यदि श्रीकृष्ण को गाय चराने जाना है, तो वे उसी दिन से जा सकते हैं, क्योंकि अगले एक वर्ष तक कोई और मुहूर्त उपलब्ध नहीं होगा। नंद बाबा ने इसे भगवान का आदेश मानते हुए श्रीकृष्ण को गाय चराने की अनुमति दे दी। इस शुभ समाचार के बाद, भगवान श्रीकृष्ण ने गायों को सजाना-संवारना शुरू किया और माता यशोदा ने भी उनकी सहायता की। इसके बाद श्रीकृष्ण अपने सखाओं के साथ गायों को चराने जंगल चले गए।
इस घटना के उपलक्ष्य में ही गोपाष्टमी पर्व मनाने की परंपरा शुरू हुई और तब से लेकर आज तक यह पर्व गौ प्रेम, सेवा और समर्पण के प्रतीक के रूप में हर वर्ष धूमधाम से मनाया जाता है।
गोपाष्टमी पर गौपूजन के विशेष लाभ
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गोपाष्टमी पर गौपूजन से अनेक लाभ प्राप्त होते हैं। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, गायों की सेवा करने से जीवन में सुख-शांति, समृद्धि, और स्वास्थ्य लाभ होता है। इसके अलावा गौपूजन से पापों का नाश होता है और घर-परिवार में सुख-समृद्धि का वास होता है। गोमाता की पूजा करने से भगवान श्रीकृष्ण का आशीर्वाद प्राप्त होता है, जो हर व्यक्ति के जीवन में सकारात्मकता और खुशहाली लाता है।