अफसरों के विरोधभासी बयान, पहले बोले घोटाला नहीं हुआ, फिर कहा जांच कर रहे
120 करोड़ का ऑडिट घोटाला, बड़े अफसरों के गिरेबान तक पहुंची जांच
जबलपुर। मध्यप्रदेश मेडिकल साइंस यूनिवर्सिटी (MPMSU) के अफसरों द्वारा कथित तौर पर किये गए 120 करोड़ के ऑडिट घोटाले (SCAM) की जांच तेज हो गयी है। दावा किया गया है कि इस मामले में यूनिवर्सिटी (UNIVERSITY) के जबलपुर और भोपाल में बैठे अफसरों की भूमिका संदिग्ध पाई गई है और जल्दी ही खुलासा होगा। इस मामले की जांच पहले से चल रही थी,लेकिन, हाल ही एनएसयूआई द्वारा ज्ञापन सौंपे जाने के बाद मामला एक बार फिर से सुर्खियों में आ गया है। उल्लेखनीय है कि इससे पहले
भोपाल(BHOPAL) की राजीव गांधी प्रौद्योगिकी यूनिवर्सिटी में भी ऐसा ही तथाकथित घोटाला उजागर हुआ है। मामले की शिकायत आर्थिक अपराध प्रकोष्ठ से भी की गई है।
कैसे हुआ ये खेल
आरोपित है कि मध्यप्रदेश मेडिकल विश्वविद्यालय मध्यप्रदेश आयुर्विज्ञान विश्वविद्यालय में बीते साल स्थानीय निकाय संपरीक्षा के ऑडिट में विनियोजन राशि (एफडीआर) का रिन्युअल नहीं कराया गया, जिससे कई तरह के सवाल उठ रहे हैं।
ऑडिट में पेश की गई विनियोजन रजिस्टर को सक्षम अधिकारी द्वारा प्रमाणित नहीं कराया गया,यही कारण है कि अफसरों की भूमिका कटघरे में आ गयी है। इस गड़बड़ी की वजह से अगस्त 2022 में 30 करोड़ 96 लाख 97 हजार 927, सितंबर 2022 में 9 करोड़ 11 हजार इक्कीस, अक्टूबर 2022 में 34 करोड़ 54 लाख 31 हजार 194 रुपए, माह नवंबर 2022 में 26 करोड़ 83 लाख 46 हजार 508 रुपए, माह दिसंबर 2022 में 8 करोड़ 74 लाख 13 हजार 993 एवं जनवरी 2023 में 10 करोड़ 81 लाख 65 हजार 157 रुपए का नुकसान हुआ है।
कुल 1 अरब 20 करोड़ 90 लाख 65 हजार 100 रुपए की एफडीआर रिन्युअल ना होने की वजह से करीब सवा करोड़ रुपए का नुकसान होने की आशंका है। 8 स्कंध पंजी, डाक पंजी, मनी पासेज और स्टाम्प ड्यूटी आदि के सत्यापन में भी कई कमियां पाई गई हैं। जो गम्भीर अनियमितता की ओर इशारा कर रही है।
आरोप: गीली कर दीं आंसर शीट
आरोप है कि आयुर्विज्ञान विश्वविद्यालय प्रशासन ने नर्सिंग की हजारों आंसर शीट को जानबूझकर किया और इसकी आड़ में गीला कर करोड़ों रुपए का गोलमाल किया।इसके अलावा, टेंडरों में भी गड़बड़ियां कर विश्वविद्यालय को आर्थिक नुकसान पहुंचाने का भी गम्भीर आरोप लगाया गया है।
विवि प्रशासन की सफाई
इधर,मप्र मेडिकल साइंस यूनिवर्सिटी प्रशासन ने इस मामले में स्पष्टीकरण दिया है। कहा गया है कि ऑडिट से जुड़े प्रकरण की जांच पहले ही विश्वविद्यालय प्रशासन द्वारा हाईकोर्ट के रिटायर्ड जज से कराई जा रही है। कहा गया कि एफडीआर राष्ट्रीय बैंकों से सम्बद्ध हैं और एफडीआर का रिन्युअल समय पर इसलिए नहीं हो सका,
उस समय अफसर उपस्थित नहीं थे। ना होने या दूसरे कारणों से कार्रवाई नहीं हो पाई। बैंकों में करंट इंटरेस्ट रेट पर एफडीआर ऑटोरिन्युअल हो जाता है। मामले की प्रारंभिक जांच रिपोर्ट राजभवन को सौंप दी गई है।