पार्टी-प्रत्याशी साबित हुए कमजोर, हमने पूरा दम लगाया

कम वोटिंग पर सामने आई अफसरों की राय,बोले,इलेक्शन में पब्लिक ने नहीं दिखाई दिलचस्पी

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जबलपुर। लोकसभा चुनाव के पहले चरण में जबलपुर लोकसभा के लिये हुए मतदान में गिरावट न केवल राजनीतिक दलों के लिये चिंता का सबब है,बल्कि चुनाव में जुटी जिला प्रशासन की टीम भी बैकफुट पर है। बुधवार को कलेक्ट्रेट सभागार में आयोजित एक कार्यक्रम में जिला प्रशासन के अधिकारियों ने बतौर स्पष्टीकरण कहा कि कम वोटिंग का कारण केवल राजनीतिक है। उन्होंने दावा किया कि चुनाव आयोग के जागरूकता अभियान में कहीं कोई कमी नहीं थी। दरअसल, ये कार्यक्रम भी आयोग के जागरूकता अभियान ‘स्वीप’ से जुड़ा हुआ था।

-सुनिए अफसरों का चुनाव ज्ञान
इस कार्यक्रम में अधिकारियों ने कहा कि कम वोटिंग की पहली वजह थी जनता की उदासीनता। पब्लिक ने चुनाव में दिलचस्पी नहीं दिखाई,जिससे वोटिंग प्रतिशत नीचे आ गया। फिर उन्होंने कहा कि सियासी लहर ऐसी है कि लोगों को पता है कि कौन जीतेगा और कौन हारेगा, इसलिए लोग वोट डालने नहीं गए। उन्होंने एक सबसे अहम बात कही, कि प्रत्याशियों की निजी छवि ने भी वोटरों को मतदान के लिए उत्साहित होने से रोका। कहा यह भी गया कि पार्टियों के कार्यकर्ता वोटरों को वोटरों को घर से निकालने में नाकाम रहे। इस दौरान अधिकारी से कुछ सवाल भी पूछे गए,जिनका जवाब उन्होंने दिया। हालांकि, ये पूरा वार्तालाप अनौपचारिक था। लेकिन, चुनाव में जुटे अधिकारियों के नजरिए की झलक जरूर मिलती है।

-सवाल, जिनसे बच नहीं सकते
लाख सफाई देने के बाद भी जिला प्रशासन की वो टीम,जो मतदाताओं को जागरूक करने में लगाई गई थी, वो अपनी जिम्मेदारियों से बच नहीं सकती। अफसर ये स्वीकार नहीं कर सके कि जागरुकता अभियान में भी कमी रही। उन अधिकारियों का जिक्र नहीं किया,जिन्होंने ने बेमन से स्वीप में काम किया। कई अधिकारी पहले स्वीप की बागडोर सम्भालने से इंकार कर चुके थे, बाद में किसी तरह राजी हुए। मोटी रकम खर्च करने के बाद यदि टीम जिम्मेदारी न ले तो इसे क्या कहा जाए, इसका अंदाज़ा लगाया जा सकता है। प्रश्न तो यह भी है कि जब सब कुछ पार्टियों और प्रत्याशियों को ही करना है तो अधिकारियों की भूमिका क्या है।

-चुनाव आयोग तो पूछेगा…
खबर यह भी है कि आयोग ने जबलपुर सहित सभी जिलों के अधिकारियों से कम वोटिंग का कारण पूछने की तैयारी कर ली है। अधिकारियों द्वारा क्या जवाब दिया जायेगा, इसके संकेत मिलने शुरू हो गए हैं। हालांकि, आयोग इतने एकतरफा स्पष्टीकरण को आसानी से मान जाएगा,इसकी उम्मीद बहुत कम है। जानकारी के अनुसार,पूरे जिले में विधानसभावार वोटिंग प्रतिशत के हिसाब से सवाल-जवाब किये जायेंगे।

-पहला चरण और वोटिंग प्रतिशत

पहले चरण में जबलपुर सहित प्रदेश की कुल 29 में से 6 लोकसभा सीटों पर भी वोट डाले गए। राजनीतिक दलों और निर्वाचन आयोग की तरफ से पूरी ताकत लगाने के बाद भी मतदान प्रतिशत 2019 के चुनाव के मुकाबले काफी कम रहा। अब राजनीतिक दल इस बात से घबराए हुए हैं कि आखिर 2019 के लोकसभा चुनाव के मुकाबले 2024 में हुए चुनाव में मतदान प्रतिशत घट क्यों गया। बीजेपी-कांग्रेस ने तो हर बूथ पर अपने कार्यकर्ताओं को अलर्ट पर रखा था। बीजेपी ने बाइक सवारों का दल बनाया गया था। मतदाताओं को मतदान केंद्र तक लाने के लिए बाकायदा पीले चावल दिए गए थे। जबलपुर सीट में 60.52% मतदान हुआ है, जबकि 2019 में यहां 69.43% मतदान हुआ था। आदिवासी क्षेत्र सिहोरा में सबसे ज्यादा 65 प्रतिशत मतदान हुआ है।

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