नहीं हुई शादियां लोग करते रहे इंतजार

अक्ती नहीं हुई शादियां लोग करते रहे इंतजार

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जबलपुर । अक्षय तृतिया पर नहीं गूंजी शहनाई, पुतरा-पुतरिया की हुई पाणिग्रहण रस्म
जबलपुर,क्षय तृतिया पाणिगृहण के अक्षय मुहूर्त का दिवस है। इस दिन विवाह करने पर कोई मुहूर्त नहीं देखा जाता। लेकिन ये सालों बाद है जब अक्षय तृतिया पर शादी के वेद मंत्र गूंज रहे हैं, न ही शहनाई बज रही है। बैंड-बाजा बारात का नामोनिशान नहीं है। ऐसा पंचाग में आए ग्रह प्रभाव के कारण हुआ है। चूंकि चैतन्य दूल्हा दुल्हन का विवाह नहीं हो रहा है, इस कारण घर-घर में मिट्टी के पुतरा-पुतरियों का विवाह संपन्न कराया जा रहा है, मान्यता है कि इस दिन शुभ मांगलिक कार्य होते ही हैं। इस कारण पुतरा-पुतरियों का विवाह होता है। भोग में चने की गीली दाल चढ़ती है और मीठे में गुड़ का भोग लगता है। गीली दाल के बाद सतुए का सेवन शुरू कर दिया जाता है, हर त्यौहार का है उद्देश्य प्रत्येक त्यौहार का एक महत्वपूर्ण उद्देश्य हुआ करता था। अक्षय तृतीया भी एक महत्वपूर्ण हिंदू त्योहार है। नई शुरूआत के लिए शुभ समय का प्रतीक है। इसे आखा तीज के नाम से जाना जाता है, माना जाता है कि सोना, घर, वाहन, चांदी या मिट्टी का बर्तन जैसी चीजें खरीदना समृद्धि लाता है। बहुत से दिन सिर्फ इतना ही समझते होगे कि आज का दिन बहुत शुभ होता है आज के दिन में बगैर मुहुंत के शादी-ब्याह सम्पन्न हो जाते हैं आज के दिन सोना, चांदी, जेवहरात आदि खरीदना भी शुभ है, लेकिन अक्षय का मतलब होता है कभी क्षय न होना। अक्षय तृतीया का विशेष महत्व तो है ही इसके अलावा भी अक्षय तृतीया में और कई महत्वपूर्ण है जो जानकारी आपको दी जा रही है।
अन्नपूर्णा जन्मीं थीं आज
आज का दिन जहां ब्रह्माजी के पुत्र अक्षय कुमार का अवतरण तो वहीं आज ही के दिन हुआ माँ अन्नपूर्णा का जन्म। चिरंजीवी महर्षि परशुराम का जन्म हुआ था इसीलिए आज परशुराम प्रकटोत्सव भी है। आज ही के दिन कुबेर को खजाना मिला था। माँ गंगा का धरती अवतरण हुआ था। सूर्य भगवान ने पांडवों को अक्षय पात्र दिया महाभारत का युद्ध समाप्त हुआ था। वेदव्यास जी ने महाकाव्य महाभारत की रचना गणेश जी के माध्यम से प्रारम्भ की थी प्रथम तीर्थंकर आदिनाथ ऋषभदेवजी भगवान के 13 महीने का कठिन उपवास का पारणा इक्षु (गन्ने) के रस से किया था। प्रसिद्ध धाम श्री बद्री नारायण धाम के कपाट खोले जाते है। वृंदावन के बाँके बिहारी मंदिर में श्री कृष्ण चरण के दर्शन होते है। जगन्नाथ भगवान के सभी रथों को बनाना प्रारम्भ किया जाता है आदि शंकराचार्य ने कनकधारा स्तोत्र की रचना की थी।

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