52 वीं राज्य स्तरीय तैराकी चैम्पियनशिप में उदीयमान तैराक का हुआ चयन

संस्कार कांवड़ यात्रा निर्विकल्प है निर्विकार है क्यों ?

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52 वीं राज्य स्तरीय तैराकी चैम्पियनशिप में उदीयमान तैराक का हुआ चयन

जबलपुर । म. प्र. तैरकी संघ के तत्वाधान में जिला तैराकी संघ इन्दौर शिशु कुंज में आगामी दिनो अयोजित 52 वीं म. प्र. राज्य स्तरीय तैराकी चैम्पियनशिप 2024 में भाग लेने वाली जबलपुर तैराकी टीम में संस्कारधानी जबलपुर के उदीयमान तैराक आगम जैन का चयन किया गया है ध्यान रहे कि विगत माह नगर में ही सम्पन्न हुई 45 वीं जिला स्तरीय तैराकी प्रतियोगिता में आगम ने तीन इवेंट्स में द्वितीय स्थान प्राप्त कर तीन सिल्वर मेडिल जीतने में सफल रहे नगर निगम क्रीड़ा अधिकारी राकेश तिवारी द्वारा संचालित भंवरताल स्वीमिंग पूल में शिवम पटेल, आशीष पटेल के कुशल निर्देशन में तैराकी प्रशिक्षण पा रहे आगम प्रतिष्ठित नागरिक अनमोल जैन के सुपुत्र है ।
दादागुरु का विचार बन रहा राष्ट्र चेतना का आधार लाखों कांवड़िए देंगे प्रकृति उपासना के साथ राष्ट्र आराधना का संदेश देव वृक्ष और मां नर्मदा का जल लेकर निकलेंगे लाखों कांवड़िए देंगे प्रकृति प्रेम के साथ सगुण उपासना का संदेश

राष्ट्र के हृदय नगर संस्कारधानी जबलपुर से प्रारंभ हुई एक आदर्श पूर्ण दिव्य परम्परा जो लाखों लोगों की आस्था श्रद्धा का केंद्र बन चुकी है। हमारी प्राचीन धर्म कला संस्कृति को जोड़ती शिवशक्ति की सगुण उपासना प्रकृति प्रेम, पूजा, पर्यावरण संरक्षण संवर्धन का संदेश देती गोल्डन बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड से सम्मानित संस्कार कांवड़ यात्रा 14 वे बर्ष में प्रवेश हो रही है।

संस्कार कांवड़ यात्रा निर्विकल्प है निर्विकार है क्यों ?

इसमें क्या खास है जानिये एक नज़र श्रावण मास में सदा शिव की उपासना का एक सहज सरल दिव्य महायोग है कांवड़ यात्रा। संस्कार कांवड़ यात्रा में जहां एक ओर जल दूसरी ओर देव वृक्षों को लेकर कावड़िया चलते है। प्रकृति प्रेम के दिव्य सन्देश के साथ भगवान भोलेनाथ की सगुण उपासना करते है। संस्कार कांवड़ यात्रा का महत्व इस यात्रा के स्थान से भी जुड़ा है जिसके कारण यह यात्रा परम् कल्याणकारी विशेष फलदायी हो जाती है संस्कार कांवड़ यात्रा का प्रारम्भ जिस स्थान से होता है वह भगवान श्री कृष्ण की योगलीला का केंद्र एवं महागुरु सिद्धनाथ का परम पवित्र तीर्थ क्षेत्र है आज भी लाखों भक्त प्रेमियों की आस्था का केंद्र है।

कैलाश धाम मटामर, यह अतिप्राचीन भगवान् परसुराम जी का सिद्ध तीर्थ क्षेत्र है जहां कॉवड़िया कॉवड़ में जल व वृक्षों को लेकर जाते है नर्मदेश्वर महादेव के मटामर दरबार। इस स्थान के समीप माँ नर्मदा एक कुण्ड में प्रगट हुई जो परसराम कुण्ड के नाम से आज भी विख्यात है। यही परसुराम जी की तपोस्थली है। संस्कार कांवड़ यात्रा guso एक अतिप्राचीन सिद्ध महातीर्थ की यात्रा है जो हमें अपनी संस्कृति प्रकृति का जोड़ती है। हजारों कॉवड़ियां नर्मदा जल के साथ देववृक्षों को लेकर बम बम भोले के जयकारों के साथ प्रेम पेड़ और पानी मानव जीवन की निशानी का सन्देश लेकर सगुण उपासना का संदेश देते है। त्रिपुरी दिव्य महातीर्थ जहाँ तेंतीस कोटि देवताओं के साथ देवाधिदेव महादेव सदा विद्यमान रहते है। काशी के समतुल्य है संस्कारधानी का त्रिपुरी महातीर्थ क्षेत्र श्रावण मास सदा शिव का सबसे प्रिय मास है। आइये जिस जल में सब तीर्था का फल समाया। जिस जल का अम्रत पान सदाशिव नित्य करते। जिस जल के स्पर्श एवं दर्शन मात्र से रोग दोष विघ्न बाधाये दूर हो जाती है। ऐसे अमृत तुल्य जल के साथ देव वृक्षों के साथ आइए पवित्र सदा शिव के श्रावण मास में शिव की सगुण उपासना से जुड़े 29 जुलाई दूसरे सोमवार को सिद्धघाट गौरीघाट से प्रातः 7 बजे 1381 दिनों से अखंड निराहार महाव्रत साधना कर रहे महायोगी दादागुरू के सानिध्य में माँ नर्मदा एवं शिव जी के दुग्धाभिषेक के साथ सामूहिक देव वृक्ष मूर्तियों के साथ कावंड़ का पूजन अर्चन कर समर्थ वाणी के साथ यात्रा प्रारंभ होगी।

कांवड़ यात्रा मार्ग-रामपुर चौक, छोटी लाइन फाटक, शास्त्री ब्रिज, तीन पत्ती मालवीय चौक, लार्डगंज, बड़ा फुआरा सराफा होते हुए लकडगंज, बेलबाग, घामापुर, कांचघर चौक, सतपुला गोकुलपुर रांझी, खमरिया स्टेट से होकर 35 किलोमीटर का रास्ता तय करते हुए कावड़िया कैलाश धाम मटामर स्थित चमत्कारिक अखिलेश्वर महादेव का जलाभिषेक करेंगे साथ ही शिव स्वरूप देव वृक्षो की स्थापना कर शिव की सगुण उपासना का संदेश देंगे।

अतिप्राचीन कॉवंड़ परंपरा की शुरुवात कैसे हुई एवं नया स्वरूप में कैसे आई जानिए एक नजर

विश्व कल्याण की भावना से सागर मंथन हुआ जिसमें अमृत रत्न के साथ विष भी निकला, जिसे देवाधिदेव महादेव ने ग्रहण किया।बिष के तेज़ से सारा सरीर अग्नि के समान जलने लगा, तब अति तीक्ष्ण हलाहल विष की ज्वाला को शांत करने सभी देवों ने मिलकर सबसे पहले शिव का अभिषेक किया यही से प्रारम्भ हुई भगवान् भोले नाथ की जलाभिषेक की परंपरा। इस परंपरा की शुरुआत के पश्चात कांवड़ यात्रा का जन्म हुआ। पहली कॉवड़ माँ गौरी ने कांवड़ में जल रखकर शिव को प्रसन्न करने प्रारंभ की। सदियों से चली आ रही ये परंपरा प्रसन्नता सम्पन्नता के लिए श्रद्धा भाव के साथ आज भी श्रावण मास में लाखों श्रद्धालु भगवान् भोले नाथ का कांवड़ में जल भरकर शिवालयों में जल अभिषेक के लिए निकलते है। सदियों से चली आ रही सनातन विश्व संस्कृति की अदभुत दिव्य परम्परा को माँ नर्मदा पथ के महायोगी श्री दादागुरु ने एक नया स्वरूप दिया। कांवड़ को प्रकृति प्रेम पूजा शक्ति की सगुण उपासना का एक आदर्श बनाया। शिव स्वरूप देव वृक्ष मूर्तियों को जल के साथ कॉवड़िया लेकर कैलाश धाम की ओर निकलते मानो साक्षात प्रकृति स्वयं संदेश देने निकली हो। कावड़ को प्रकृति संस्कृति की ओर ले जाने का आज एक सहज महायोग बनाया। संस्कार कांवड़ यात्रा नर्मदा मिशन सदाशिव के प्रिय श्रावण मास के दूसरे सोमवार में भक्त प्रेमियो का आह्वान करती है। कांवड़ यात्रा में सम्मिलित होकर शिव शक्ति की सगुण उपासना से जुड़े साथ ही प्रकृति

प्रधान स्वच्छ भारत समर्थ भारत का निर्माण करे।

आज प्रेसवार्ता को संस्कार कॉवड़ यात्रा के अध्यक्ष नीलेश रावल, संयोजक शिव यादव, जगत बहादुर सिंह अन्नू, भारत सिंह यादव, विशाल तिवारी ने दी साथ ही समिति एवं नर्मदा मिशन के राजेश यादव, राजेन्द्र मिश्रा, कमलेश सिंह, प्रमोद पाठक, प्रो. अजिंक्य फाटक, रंजीत, रामरतन यादव, महेश पसीने, वर्मा जी एवं सभी समिति के साथ अनेक संगठनों संस्थाओ ने यात्रा में शामिल होने का आह्वान किया।

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