मुफ्फकिर-ए-पाकिस्तान

चीन ओ अरब हमारा, हिन्दोसताँ हमारा मुस्लिम हैं हम, वतन है सारा जहाँ हमारा

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मुफ्फकिर-ए-पाकिस्तान

 

तराना-ए-मिल्ली अल्लमा मोहम्मद इक़बाल ने मुस्लिम लीग और पाकिस्तान के समर्थन में लिखी जिसका शाब्दिक अर्थ “समुदाय का गान” होता है लेकिन यह मुस्लिम “उम्मा”¹ के लिए आगाज़² था इक़बाल ने दुनिया भर के सभी मुसलमानों को एक ही राष्ट्र का हिस्सा माना है……(¹उम्मा=संसार भर के मुस्लिम एक ही परिवार हैं। ²आगाज़=आमंत्रण)

चीन ओ अरब हमारा, हिन्दोसताँ हमारा
मुस्लिम हैं हम, वतन है सारा जहाँ हमारा

तौहीद की अमानत, सीनों में है हमारे
आसाँ नहीं मिटाना, नाम ओ निशाँ हमारा

(चीन याने मध्य एशिया से लेकर अरब तक हमारे है और भारत हमारा ही है। हम मुस्लमान है इसलिए सम्पूर्ण विश्व हमारा वतन है अर्थात सारी दुनिया शरीयत के अनुसार चलेगी।
हम मुस्लमानों की तौहीद (पांच स्तंभ= रोज़ा, नमाज, हज़ जकात और जिहाद) हमें विरासत में मिली है अतः यह हमारी अमानत (धरोहर) है, जो हमारे दिल दिमाग में बसी है। इतना आसान नहीं है हमारी मुस्लिम सोच को और हमारे उसूलों को मिटाना।)

अल्लमा का अर्थ विद्वान हैं जो मोहम्मद इकबाल के आगे लगने से अल्लमा इक़बाल हो गया। लेकिन इकबाल पर और भी तमगे लगे… मुफ्फकिर-ए-पाकिस्तान (पाकिस्तान का विचारक), शायर-ए-मशरीक़ (पूरब का शायर) और हकीम-उल-उम्मत (उम्मा का वैद्य) आदि। इकबाल के पिता हिन्दू थे रत्न लाल पंजाब के सियालकोट के निवासी थे, और बीरबल के वंशज थे । बीरबल के तीसरे बेटे कन्हैया लाल इकबाल के दादा थे। जिहादी मुसलमानों ने रतनलाल को स्कूल में ही घेरना चालू कर दिया था युवक रतनलाल को बलात् इस्लाम कबूल करवा कर कट्टर मुसलमान नूर मोहम्मद बना दिया इस सदमे को कन्हैया लाल सहन नहीं कर पाये। रतनलाल से नूर मोहम्मद बनते ही उसका निकाह एक कट्टर मुस्लिम महिला इमाम बीबी से कर दिया गया। (मोहम्मद इकबाल इन्हीं की पैदाइश है। हिंदू से मुसलमान बने इन्हीं का बेटा मोहम्मद इकबाल एक दिन आइडिया ऑफ पाकिस्तान का जनक बनेगा किसी ने सोचा भी न होगा जो भारत माता के विखंडन का आधार बना था।

उसने आगे लिखा है………

³दुनिया के बुत-कदों में पहला वो घर ख़ुदा का
हम इस के पासबाँ हैं वो पासबाँ हमारा

⁴तेग़ों के साए में हम पल कर जवाँ हुए हैं
ख़ंजर हिलाल का है क़ौमी निशाँ हमारा

⁵मग़रिब की वादियों में गूँजी अज़ाँ हमारी
थमता न था किसी से सैल-ए-रवाँ हमारा

1904 में प्रसिद्ध क्रांतिकारी लाला हरदयाल ने लाहौर में एक जलसे में इकबाल को आमंत्रित किया था इकबाल ने भाषण देने के बजाय ‘तराना ऐ हिंद’ सुनाया……

सारे जहां से अच्छा हिंदुस्तां हमारा
हम बुलबुलें हैं इसकी ये गुलिस्तां हमारा

लाला हरदयाल को ये ‘तराना ऐ हिंद’ बहुत पसंद आया उन्ही के कारण कांग्रेस के जलसों और अधिवेशनों में इसे गया जाने लगा साल भर में इकबाल की शोहरत सारे मुल्क में फ़ैल गई। 1905 में लंदन की “जमात-ऐ-दावत” ने मोहम्मद इकबाल को इंग्लैंड बुलावा लिया। लंदन से वापसी के साथ ही इकबाल को अल्लमा का तमगा दिया गया गोया अब वे अल्लमा इक़बाल हो गए। 1910 में उसने ‘तराना ऐ हिंद’ को संशोधित करके “तराना ऐ मिल्ली” लिखा (इस्लाम के रंग में रंग जाना और बात है लेकिन अपने देश से द्रोह रखना बहुत बुरी बात है) इकबाल जो हिंदुस्तान की सरजमीं पर पैदा हुआ, भारत जो मादरेवतन हुआ करता था अब उसके लिए जमीन का एक टुकड़ा भर रह गया। इस्लाम के पायस महज 1400 सालों के इस्लाम को उसने अपनी शायरी तराना ऐ मिल्ली में किस कदर पिरोया है उसकी आगे की लाइनें हैं……….

⁶बातिल से दबने वाले ऐ आसमाँ नहीं हम
सौ बार कर चुका है तू इम्तिहाँ हमारा

⁷ऐ गुलिस्तान-ए-उंदुलुस वो दिन हैं याद तुझ को
था तेरी डालियों में जब आशियाँ हमारा

⁸ऐ मौज-ए-दजला तू भी पहचानती है हम को
अब तक है तेरा दरिया अफ़्साना-ख़्वाँ हमारा

⁹ऐ अर्ज़-ए-पाक तेरी हुर्मत पे कट मरे हम
है ख़ूँ तिरी रगों में अब तक रवाँ हमारा

¹⁰सालार-ए-कारवाँ है मीर-ए-हिजाज़ अपना
इस नाम से है बाक़ी आराम-ए-जाँ हमारा

¹¹’इक़बाल’ का तराना बाँग-ए-दरा है गोया
होता है जादा-पैमा फिर कारवाँ हमारा

💀

³दुनिया के मंदिरों की मूर्ति वाले भगवानों से बेहतर और उपर पहला कुन (भगवान) खुदा का घर (मस्जिद) है।
वो (अल्लाह) हमें पसंद करता है और हमारी पसंद हमारा कुन (अल्लाह) है।

⁴हम हमेशा से युद्ध और तलवार के बीच पलकर बड़े हुए और जवान हुए हैं।
हिलाल (शाकाहारी पशु की गर्दन धीरे-धीरे काटना तड़पा तड़पा कर मारना हलाल होता है) इसमें जो खंजर उपयोग किया जाता है वह अर्धचंद्र जैसा है वह हम मुस्लमानी कौम की पहचान है।

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