दिल कहे रुक जा रे रुक जा..

हीं पे कहीं, जो बात इस जगह वो कहीं पर नहीं..!

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दिल कहे रुक जा रे रुक जा..

दिल कहे रुक जा रे रुक जा.. यहीं पे कहीं, जो बात इस जगह वो कहीं पर नहीं..! हर साल 31 जुलाई यानी आज के दिन दीक्षितपुरा स्थित मंजू तेली की कुलिया के के आसपास का इलाका खास हो जाता है। यहां से गुजरने वाला शायद ही कोई ऐसा बंदा होगा, जो यहां ठहर कर रफी के गाने न सुनता हो। 31 जुलाई 1980 को रफी साहब का निधन हुआ था, और अगले साल 1981 से यहां रहने वाले रफी के दिवाने संजय पाठक ने उनके गीतों को बजाने का सिलसिला प्रारंभ किया था। वे दीवानगी का आलम आज 38 साल बाद भी यथावत है।
रफी के अनेक दीवाने, पर संजय की बात अलहदा
हर साल आज के दिन सुबह 8 बजे से रात 8 बजे तक यहां रफी के गीत बजाए जाते हैं।
रिपीट नहीं एक भी गीत
संजय पाठक बताते हैं कि यहां के गीत परंपरा की ये खासियत है कि गीत कितना भी हिट क्यों न हो, लेकिन वो दुबारा नहीं बजाया जाता। 12 घंटों में हर मूड के करीब 300 गीत यहां बजाए जाते हैं। पहले वर्ष लोकगीत गायक शिब्बूदादा ने दीप प्रज्जवलन कर इस आयोजन की शुरुआत की थी। कांग्रेस नेता और विधायक लखन
दीवानगी हफी करी पर
घनघोरिया, पूर्व विधायक शरद जैन, भाजपा नेता संदीप जैन सहित कई संगीत प्रेमी संजय के रफी प्रेम के दीवाने हैं।
रफी के घर जाएगी मूर्ति
रफी के इस दीवाने ने अपने स्वर फरिश्ते के पुत्र शाहिद रफी से उनके घर रफी की प्रतिमा लगाने की अनुमति ली है। एक-दो वर्ष में वे रफी की प्रतिमा उनके मुंबई स्थित घर में जाकर स्थापित करेंगे। आज सुबह संजय ने पहला गीत बजाया ‘मैंने चांद-सितारों की तमन्ना की थी’। इसके बाद गानों का जी सिलसिला शुरू हुआ तो फिर चलता ही गया।
शहर में रफी की दीवानगी हद स्तर पर है। व्यवसायी शेखर अग्रवाल रफी के बड़े दीवाने हैं। उन्होंने संगीत के एक से एक कार्यक्रम जबलपुर को दिए हैं। उनकी परंपरा को अब संगीत दीवाने पंकज शाह आगे बढ़ा रहे है। मानस भवन में हर साल उनका कार्यक्रम हर साल सुर्खियों में रहता है। इस वर्ष 27 जुलाई को मुंबई के संगीत फनकारों द्वारा आयोजित कार्यक्रम ने खूब प्रशंसा बटोरी। रफी की याद में साल भर आयोजन यहां होते हैं। आज भी मानस भवन में एक कार्यक्रम आयोजित है। जिसमें शहर भर के संगीत प्रेमी अपनी प्रसतुति देंगे

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