पावन खिण्ड दौड़ – 2024
सिद्धी जौहर ने दक्षिण से 15,000 सैनिकों के साथ मार्च 1660 में किले को घेराबंदी कर दी।
छत्रपति विवाजी महाराज अफजल खान के वध के बाद कोल्हापुर के पास पन्हाळा नाम के किले पर रुके हुए थे, साथ में लगभग 1200 की सेना थी। सिद्धी जौहर ने दक्षिण से 15,000 सैनिकों के साथ मार्च 1660 में किले को घेराबंदी कर दी। 4 माह तक सेना किले को घेर कर डटी रही। किले पर भोजन सामग्री समाप्त होने लगी और पिवाजी तथा उनके सरदारों को लगा कि अब अधिक दिन लड़ना संभव नहीं है।
शिवाजी के सरदारों ने योजना बनाई कि 13 जुलाई की रात को शिवाजी को गुप्त रूप से किले से निकालकर लगभग 60 किलोमीटर दूर अभेद्य किले विषालगढ़ पर पहुँचाने से सिद्धी जौहर को मात दी जा सकती है।
13 जुलाई को घनघोर बरसात में रात के अंधेरे में किले से दो पालकियाँ निकाली गई। एक में स्वयं विवाजी और दूसरे में विवाजी का रूप बनाकर बैठा हुआ एक सैनिक।
शिवाजी के सैनिक पालकी को लेकर 66 किलोमीटर दौड़ते हुए निकले। रास्ते में सुबह हुई और मुगलों की सेना को षिवाजी की रणनीति समझ में आ गई। विषालगढ़ अभी भी 12 किलोमीटर की दूरी पर था मुगलों की सेना बहुत बड़ी संख्या में विवाजी का पीछा करते हुए घोड़खिण्ड तक पहुँच गई। घोड़खिण्ड में एक स्थान ऐसा था, जहाँ एक समय में मुष्किल से 2-3 घोड़े एक साथ निकल सकते थे।
बाजीप्रभु देशपाण्डे जिनकी आयु 45 वर्ष की थी. अपने 300 सैनिकों के साथ घोड़खिण्ड रूक गए और आने वाली मुगल सेना से तब तक लड़ते रहे, जब तक कि छत्रपति शिवाजी महाराज के विशालगढ़ पर पहुँचने का संकेत तोप के गोलों की आवाज से उन्हें प्राप्त नहीं हुआ। दोनों हाथों में तलवार लेकर लड़ने वाले बाजीप्रभु देशपाण्डे के शरीर पर सैकड़ों घाव हो गए थे परंतु जब तक विवाजी महाराज की सुरक्षितता की सूचना उन्हें नहीं मिली तब तक वे लड़ते रहे। जब उस युद्ध का विवरण शिवाजी महाराज को एवं उनकी माता जीजाबाई को मिला, तो महाराज ने उस खिण्ड का नाम पावनखिण्ड कर दिया।
इस वर्ष 26 जुलाई को जबलपुर महानगर में खिंड दौड़ का आयोजन प्रातः 7.30 बजे सिविक सेन्टर से आरंभ होकर मदन महल थाने के पास शिवाजी प्रतिमा के पास समाप्त होगी।