श्रीकृष्ण ने दिया प्रकृति से जीव के समन्वय का संदेश : स्वामी नरसिंह दास जी महाराज

वैसाख मास में शिव मंदिर हाथीताल गोरखपुर में श्रीमद्भागवत कथा पुराण

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जबलपुर – धारा धाम में अवतरित होकर भगवान भी मानव जीवन के सुख-दुख का उपभोग करते हैं। धर्म अनुसार आचरण करते हुए जीवन में उन्नति का मार्ग प्रशस्त करते हैं, जीव को परमात्मा का ध्यान कर जीवन की क्रियाएं करना चाहिए।
आज षष्ठ दिवस की कथा का शुभारंभ करते हुए स्वामीजी ने शिव मंदिर हाथीताल गोरखपुर में श्रीमद्भागवत कथा पुराण में कहा भगवान श्री कृष्ण चीर हरण लीला के बहाने गोपियों के वस्त्र हरण नहीं बल्कि मन और बुद्धि के अज्ञानावरण का हरण करते हैं। यह जीव जब अपना सर्वस्व परमात्मा को सौंप देताहै, तब वह सर्व समर्थ ईश्वर अनेक जन्मों के संचित पाप कल्मष व अज्ञान को नष्ट कर देते हैं- ” अनेक जन्मार्जित पाप-चौरंम् । भगवान श्री कृष्ण बहुत सुन्दर है, जब वह मस्तक पर मयूर का पंख धारण किये, वेणु बादन करते हुए यमुना पुलिन में सखाओ के साथ वृन्दावन में गोचारण के बहाने विचरण करते हैं तो सम्पूर्ण प्रकृति दर्शन करके धन्य हो जाती है। इन्द्र की पूजा बन्द करके गिरिराज गोबर्द्धन की पूजा कराकर कुपित हुए इन्द्र की मूसलाधार जल वृष्टि से रक्षा करते हुए श्री कृष्ण ने विशाल गिरिराज को कनिष्ठिका अँगुली में सात दिवस पर्यन्त धारण करते हैं। यह गोबर्द्धन क्या है, गो अर्थात इन्द्रियों का सम्बर्द्धन जहाँ हो, ऐसा हम आप के सबका यह शरीर ही गोबर्द्धन है, जिसे प्रभु श्री कृष्ण सातों दिन धारण कर, कृपा कर जीवन प्रदान करते हैं। विविध प्रसंगों का वर्णन करते हुए स्वामी जी ने दिव्य महारास लीला आदि के बाद भगवान का मथुरा गमन लीला व पावन रुक्मिणीहरण के अनन्तर श्री कृष्ण रुक्मिणी विवाह की दिव्य चर्चा करते हुए कहा यह परमात्मा अजन्मा अविनाशी होते हुए भी भक्तों के लिए जन्म भी धारण करते हैं, बाल लीला भी करते हैं विवाह भी करके गृहस्थ जीवन भी प्रगट करते हैं। इस अवसर पर व्यास पीठ पूजन यजमान निर्मला हरिवंश गुप्ता रवि प्रज्ञा गुप्ता , अशोक मनोध्या, प्रतिभा विध्येश भापकर, लोकराम कोरी, डा संदीप मिश्रा, राजेश नेमा सहित भक्त जनों ने किया।

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