श्रीभरत का प्रेम तो रहस्यमय है।
जब कोई व्यक्ति स्नान करने के लिये जायेगा तो सबसे पहले उसकी दृष्टि इस ओर जायेगी कि सरोवर का जल साफ है या नहीं।
श्रीभरत का प्रेम तो रहस्यमय है।
श्रीराम का चरित्र दिव्य जल से भरे सरोवर की तरह है।” जब कोई व्यक्ति स्नान करने के लिये जायेगा तो सबसे पहले उसकी दृष्टि इस ओर जायेगी कि सरोवर का जल साफ है या नहीं। यदि जल स्वच्छ नहीं है तो नहाने का मन नहीं करेगा। यदि जल स्वच्छ नहीं है तो नहाने का मन नहीं करेगा। और जो व्यक्ति जल पीने के लिये जायेगा उसकी दृष्टि स्वच्छता पर ही केन्द्रित नहीं रहेगी। वह यह भी देखेगा कि जल पीने में मीठा और शीतल है या नहीं। पर जो व्यक्ति तैरने के लिये जायेगा वह केवल स्वच्छता, मिठास अथवा शीतलता पर ही दृष्टि नहीं डालेगा, ‘वह यह भी देखेगा कि जल में गहराई है या नहीं ? उपरोक्त उद्गार भरत सरिस को राम सनेही प्रवचन माला में पं. उमाशंकर शर्मा जी “व्यास” ने महेश भवन गोपालबाग में रामायणम जबलपुर द्वारा आयोजित श्री राम चरित मानस परायण ज्ञान यज्ञ के पंचम दिवस व्यक्त किये।
महाराज श्री कहते है कि श्रीभरत तो भावना के बड़े सूक्ष्म स्तर पर रहते हैं। चित्रकूट में श्रीभरत की भावना यह थी कि जो व्यक्ति छोटा होता है, वह तो पद पाने के लिये पद के पास जाता है, पर हमारे प्रभु तो इतने बड़े हैं कि सिंहासन उन्हें पाकर बड़ा बनेगा। ‘अत: सिंहासन चलकर प्रभु से प्रार्थना करे कि आप मुझ पर बैठ जाइये, मुझे बड़ा बनाइये।” इसलिये प्रभु को सिंहासन के पास नहीं लाना है, बल्कि सिंहासन को ही प्रभु के पास ले चलना है।
महाराज जी ने कहा कि छाया में प्रत्येक क्रिया दिखाई देती है, लेकिन इतना होते हुए भी छाया में न स्वयं का मन है, न अपनी बुद्धि है, न अपना चित्त है और न ही अपना अहंकार है। वह तो केवल व्यक्ति के प्रतिबिम्ब में गतिशील हो रही है। इसी प्रकार श्रीभरत ने अपने व्यक्तित्व को श्रीराम के व्यक्तित्व की छाया बना दिया है। उन्होंने तो भगवान राम के अन्तर्मन में, बुद्धि में, चित्त में, अहंकार में अपने आपको इतना विलीन कर दिया है कि उनका कोई अलग व्यक्तित्व, कोई अलग विचार, कोई अलग माँग दिखाई ही नहीं देती। यही श्रीभरत के व्यक्तित्व की विशेषता है।
महाराज जी ने बतलाया कि एक बार सुनयनाजी ने श्रीजनकजी से कहा कि महाराज ! आप तो महान् तत्त्वज्ञ हैं। श्रीभरतजी के विषय में कुछ सुनाइये! श्रीजनक ने कहा – महारानी ! मेरी बुद्धि का धर्म में, राजनीति में, वेदान्त में तो प्रवेश है – परंतु इतना होते हुए भी क्या बताऊँ ! “मेरी बुद्धि भरत को तो क्या श्रीभरत की छाया को भी छूने में असमर्थ है।” श्रीभरत का प्रेम तो रहस्यमय है, उसे मैं नहीं जानता। परन्तु जब महारानी ने पूछा कि महाराज ! श्रीभरत के उस रहस्यमय प्रेम का पता कैसे चले ? क्या कोई श्रीभरत के विषय में जानने वाला है ? उस समय महाराजश्री जनक ने कह दिया कि बस ! एकमात्र राम ही सही-सही श्रीभरत को जानते हैं।
श्री राम सरकार एवं महाराज श्री का पूजन सर्व श्री मुकुंददास जी महाराज, पं. अरुण शर्मा, पं. अशोक दुबे, पं. बासुदेव शास्त्री, मेवालाल छिरोलया, जी डी दीक्षित, उमेश राठौर, रोशनी अग्रवाल, संजय शर्मा, बासुदेव सावल खत्री, डॉ गोविंद नेमा, मुन्ना महाराज, अखिलेश त्रिपाठी, गोपाल खजांची, गिरिराज चाचा, ओमप्रकाश सोनी ने किया। मंच संचालन आचार्य डॉ. हरिशंकर दुबे एवं स्वस्तिवाचन पंडित रोहित दुबे, पं. सौरभ दुबे, पं. महेंद्र पांडेय, पं. पवन आदि ने किया।