धर्म-कर्म ही मनुष्य की स्वयं की पूंजी: स्वामी अशोकानंद जी महाराज
हर कोई कभी न कभी साथ छोड़ देता हैं, लेकिन धर्म कभी मनुष्य का साथ नहीं छोड़ता।
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