संस्कृति की रक्षा और देश की उन्नति हमारी सुमति पर ही आधारित है।
जहां प्रतिदिन ज्ञान गंगा का प्रवाह सतत चल रहा है जिसमें निर्यापक श्री ने बताया कृति और कर्म की उतनी कीमत नहीं जितनी की संस्कृति की और प्रकृति की रक्षा करने पर ही संस्कृति की रक्षा संभव है।