इसलिए शायद मां को ईश्वर का रूप माना गया है

यदि घर में दस कार्य हैं तो उसमें से सात कामों की जिम्मेदारी मां के कंधों पर होती है

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इसलिए शायद मां को ईश्वर का रूप माना गया है

 

हाल ही में एक सर्वे सामने आया है जिसमें यह कहा गया है कि किसी भी परिवार में पिता की तुलना में मां ज्यादा मानसिक बोझ उठाती है यदि घर में दस कार्य हैं तो उसमें से सात कामों की जिम्मेदारी मां के कंधों पर होती है इसके बावजूद परिवार हमेशा मां के कामों में परफेक्शन की उम्मीद भी रखता है लेकिन वह यह भूल जाता है की मां की जिम्मेदारियां कितनी बड़ी है और उन जिम्मेदारियां को वह किस सफलतापूर्वक निभा रही है, हो सकता है कि उसके कामों में उतना परफेक्शन ना हो जितना उसके परिजन चाहते हैं लेकिन उसकी भूमिका को कतई नजरअंदाज नहीं किया जा सकता
सर्वे में यह भी बताया गया है कि मानसिक बोझ मां का तनाव बढ़ा सकता है इसलिए उसके इस मानसिक बोझ को कम करने के लिए आवश्यक है कि मां के काम में परिवार के अन्य सदस्य बाकायदा हाथ बटाएं ,उसे आराम करने का भी मौका दें। एक मां अपने लिए भी कुछ समय चाहती है लेकिन पारिवारिक जिम्मेदारियां के चलते वो अपने प्रति बिल्कुल बेपरवाह हो जाती है जिसका असर अक्सर उसके स्वस्थ पर पड़ता है लेकिन यदि घर के सदस्य उसके कामों में साझेदारी करें तो हो सकता है कि वह अपने प्रति जितनी लापरवाह है उसमें कहीं ना कहीं कमी आ सके ।
मां तो मां होती है उस पर कई तरह की जिम्मेदारी भी होती हैं उसे अपने पति को भी देखना है, अपने बच्चों की भी परवरिश करनी है यदि घर में बूढ़े सास ससुर हैं तो उनकी भी सेवा करना है शायद इसलिए वो हर वक्त यही सोचती है कि इन तमाम लोगों के बीच में वह अपना सामंजस्य कैसे बैठा सके । चाय से लेकर भोजन और भोजन से लेकर बिस्तर बिछाने तक का काम मां के जिम्मे होता है होना तो यह चाहिए कि मां का योगदान जो परिवार के प्रति है उसकी परिवार के लोग सराहना करें क्योंकि उस पर जितने कामों का बोझ होता है उससे शारीरिक कष्ट तो होता ही है साथ ही मानसिक तनाव भी उसे घेर लेता है यदि मां सिर्फ ग्रहणी है तो फिर भी उसे उतना तनाव नहीं झेलना पड़ सकता लेकिन यदि मां कामकाजी महिला भी है तो उसे परिवार और अपने कार्यक्षेत्र का दबाव भी लगातार झेलना पड़ता है ।
मां के योगदान को तो कभी नकारा ही नहीं जा सकता ,अपने गर्भ में नौ महीने तक किसी को जीवित रखना और फिर उसे इस दुनिया में लाकर जन्म देना यह सिर्फ मां के ही बस की बात है इन नौ महीना में उसे किस तरह की मानसिक और भावनात्मक प्रक्रियाओं से गुजरना पड़ता है इसका अंदाजा शायद ही कोई पुरुष लगा सकता है जिस तरह ईश्वर ने इस सृष्टि की रचना की है उसी तरह मां भी संतानों को जन्म देकर इस सृष्टि को आगे बढ़ाने में ईश्वर क्यादद करती है इसलिए मां को ईश्वर का दूसरा रूप माना जाता है मां को तो वैसे भी जननी के रूप में परिभाषित किया गया है एक नवजात शिशु से लेकर एक जवान बेटे या बेटी की परवरिश करने के पीछे उसकी कितनी मेहनत होती है यह भी कोई पुरुष शायद ही जान पाए । मां की महानता और उसके त्याग की कोई सीमा नहीं ।वह अपने को अपने से दूर रख सिर्फ अपने परिवार जनों अपने पति, संतानों और अन्य सदस्यों की सेवा में अपना पूरा जीवन व्यतीत कर देती है। धैर्य, साहस, वात्सल्य, ममता,सहनशीलता जैसे तमाम शब्द मां के ही सद्गुणों के लिए बनाए गए हैं मां शब्द ही अपने आप में एक गाथा कहता है वो यह गाथा कहता है कि मां में ही पूरा संसार समाहित है यदि मां ना हो तो इस दुनिया को कैसे बढ़ाया जा सकता है यदि मां संतानों को जन्म देने से इनकार कर दे तो क्या होगा? यह भी एक बहुत बड़ा प्रश्न है इसलिए उसके त्याग को छोटा समझना निश्चित रूप से ठीक नहीं है क्योंकि दुनिया में मां से बढ़कर ना तो कोई हुआ है और ना होगा। उसकी तपस्या, उसका त्याग, उसकी ममता उसका वात्सल्य, अपने शरीर के एक अंग से जब नवजात शिशु को दूध पिलाती है तो वह दूध नहीं जीवन दान होता है और इस दूध के कर्ज को निभाने की जिम्मेदारी शायद तमाम पुरुष जाति की होनी चाहिए
और उसे इस बात की गंभीरता को समझते हुए इस कार्य को निभाना भी चाहिए लेकिन इस पुरुष प्रधान समाज में महिलाओं की स्थिति दोयम दर्जे की मानी जाती है संतान को उसके पिता के नाम से जाना जाता है जबकि संतान को दुनिया में लाने का श्रेय मां का होता है क्या कोई पुरुष उन तमाम जिम्मेदारियां को अपने कंधे पर ले सकता है जो एक महिला या मां ताजिंदगी उठाती है ।
सर्वे में एक विशेषज्ञ जोड़ी विल्मोर कहते हैं कि मां को उनकी पसंदीदा गतिविधि और शौक से जुड़ने के लिए पूरे परिवार को प्रयास करना चाहिए जो परिवार की देखभाल में उनसे पीछे छूट गए। अपनी खुद की देखभाल के लिए भी उन्हें वक्त दें ताकि वे अपने आप को और अधिक ऊर्जावान बना सके, मां के योगदान को उसकी परिवार के प्रति की जा रही कोशिशें की अगर सराहना की जाए तो परिवार एक मजबूत आधार पैदा कर सकता है और यही मजबूत आधार किसी भी खुशहाल परिवार के लिए आवश्यक है।

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