माढ़ोताल तालाब की सफाई के नाम पर दो साल से मची है लूट-खशोट
जनता के खून पसीना के पैसों की होली कैसे खेली जाती है इन से सीखें
बारिश का मौसम शुरू हो चुका है। कई प्रदेशों में अच्छी खासी बारिश हो भी रही है। जबलपुर में भी मौसम विभाग के अनुसार 20 तारिक तक मानसून आने की संभावना है। इसके बाद भी जिम्मेदार तालबों की सफाई कराने के लिए उतावले हो रहे हैं। कहीं-कहीं तो इनके द्वारा बड़ी-बड़ी पोकलेन मशीनों को तालाबों में उतार कर सफाई का कार्य शुरू भी कर दिया गया है। तालाबों की सफाई करना कोई बुरा काम नहीं हैं। उनकी सफाई होनी ही चाहिए, ताकि जल की गुणवत्ता में सुधार होने के साथ ही जल स्तर में वृद्धि भी हो। परंतु उसका भी एक समय होता है और वह समय होता है मार्च, अप्रैल और मई ये तीन माह नदी, तालाब, कुआ, बावड़ी व अन्य जल स्रोतों की साफ-सफाई के लिए उपयुक्त होते हैं। क्योंकि इस समय इनमें पानी की मात्रा कम हो जाती है, वहीं कई सूख जाते हैं। तब उनकी साफ-सफाई और गहरीकरण का कार्य किया जाना चाहिए, ताकि बारिश में इनमें साफ स्वच्छ पानी भर सकें।
बारिश सिर पर चले तालाब का गहरीकरण करने
पूरी गर्मी निकल गई तब जिम्मेदारों को तालाब का गहरीकरण करने की सुध नहीं आई। जैसे ही मानसून आने की आहट लगी तो इनको तालाब का गहरीकरण और सफाई करने की सुध सवार हो गई। एेसा क्षेत्रीय लोगों का कहना है। इनका तो यहां तक कहना है कि माढ़ोताल तालाब का गहरीकरण करने में सालों का समय लग सकता है। अगर प्राशासन रात-दिन, छैह से आठ पोकलेन मशीन और दर्जनाें हाईवा लगा कर इसकी सफाई और गहरीकरण का काम करायेगा, तब कहीं जाकर चार से छैह माह में इसका गहरीकरण और सफाई हो पायेगी। क्योंकि माढ़ाेताल तालाब का रक्बा काफी बड़ा है और इसमें सिल्ट भी अधिक है। इन तमाम बातों की जानकारी जनप्रतिनिधियों से लेकर प्रशासन के नुमाइंदों को भली-भांति मालुम है इसके बाद भी इनके द्वारा मानसून आने से चार दिन पहले तालाब का गहरीकरण करने के लिए लाव-लस्कर लेकर तालाब में उतर गये। इसे क्या कहेंगे? जनता के खून पसीने की कमाई को बारिश में बहाना नहीं कहेंगे तो क्या कहेंगे?
विगत वर्ष भी इन्हीं दिनों तालाब की खुदाई का कार्य शुरू किया गया था
क्षेत्रिय लोगों ने बताया कि विगत वर्ष इन्हीं दिनों माढ़ोताल तालाब का गहरीकरण करने के लिए दो पोकलेन मशीन और कुछ हाईवा तालाब में उतारे गये थे। मुसकिल से चार से छैह दिन तालाब का गहरीकरण का कार्य हो सका इसके बाद बारिश शुरू हो गई थी। जिसके चलते तालाब का गहरीकरण का काम वही बंद करना पड़ गया था। इनको इससे सबक लेना था और गर्मी शुरू हाेते ही तालाब का गहरीकरण का काम शुरू कर देना था। अगर इनके द्वारा ऐसा किया गया होता ताे आज तालाब का गहरीकरण पूर्ण हो चुका होता। परंतु इनके द्वारा ऐसा नहीं किया गया, इससे साफ जाहिर होता है कि इनको तालाब के गहरीकरण से कोई लेना-देना नहीं हैं। इनको तों बस तालाब गहरीकरण के नाम पर जो पैसा आया है, उसे अपनी जेबों के हवाले करने से मतलब है।
पैसों की बर्बादी नहीं है तो क्या है
नगर निगम और कलेक्ट्रेट के सूत्रों की माने तो बारिश में तालाब गहरीकरण की बात तो दूर की बात है। लोग घर की मरमंत तक नहीं करवाते हैं। इसके बाद भी जिम्मेदार 30 से 40 एकड में फैले तालाब का गहरीकरण कराने मानसून आने के बाद निकल पड़े। इससे इनकी मंशा साफ जाहिर हो रही है कि तालाब के गहरीकरण की आड़ में पैसों की बंदर बांट करना है।
जानलेवा होते जा रहा तालाब
गहरीकरण के नाम पर तालाब को कहीं गहरा तो कहीं उथला करके ये चलते बनेगे। ज्यों बारिश होगी और यह भर जायेगा, तब निवासरत लोग इसका पानी नहाने से लेकर डेली निस्तार के लिए यूज करने लगते हैं। वहीं गाय, भैंस बकरी आदि मवेशियों के साथ ही यहां से लगी बस्ती में रहने वाले छोटे-छोटे बच्चे इसमें नहाने के लिए आते हैं। तालाब दीन दयाल चौक और बस स्टैंड के नजदीक होने से ग्रामीण क्षेत्रों से आने वाले गरीब तबके के यात्री बस से उतरकर सीधे इसी तालाब की ओर मुंह-हाथ धोने के लिए भागते हैं। तालाब काे जब से इनके द्वारा कहीं टीला तो कहीं खाई जैसा खोदा जा रहा है तब से ये जानलेवा हो गया है।